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Lakhimpur Kheri:नेपाली हाथियों से मुकाबले के लिए बुलाये जायेंगे तमिलनाडु से ट्रैकर्स

  • वीरेंद्र सक्सेना
  • 8 नव॰ 2022
  • 3 मिनट पठन


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डीएफओ संजय बिस्वाल ने बताया कि नेपाल से आए जंगली हाथी दक्षिण खीरी वन प्रभाग मेंकरीब दो महीने से डेरा डाले हुए हैं। यह हाथी मोहम्मदी रेंज जंगल के आसपास सहजनियां, देवीपुर और आंवला बीट से सटे खेतों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

डीएफओ संजय बिस्वाल ने बताया कि नेपाल से आए जंगली हाथी दक्षिण खीरी वन प्रभाग में करीब दो महीने से डेराडाले हुए हैं। यह हाथी मोहम्मदी रेंज जंगल के आसपास सहजनियां, देवीपुर और आंवला बीट से सटे खेतों में फसलों कोभारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे किसानों में नाराजगी बढ़ रही है। हाथियों के लंबे प्रवास और उनकी गतिविधियों कोदेखते हुए लग रहा है कि ये हाथी वापसी के मूड में नहीं हैं। ऐसी दशा में किसानों और उनकी फसलों की सुरक्षा केमद्देनजर हाथियों को खदेड़ना जरूरी हो गया है। वन विभाग के स्थानीय कर्मचारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद इसमेंसफल नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए अब तमिलनाडु से एक्सपर्ट ट्रैकर्स बुलाने पर विचार किया जा रहा है।

जंगल में वन्यजीवों का बढ़ना और दूसरी जगह से आकर वन्यजीवों का यहां रह जाना वन विभाग के लिए खुशी औरगौरव की बात होती है। यह इस बात का संकेत होता है कि जंगल की पारिस्थितिकी समृद्ध है लेकिन जंगल से बाहरनिकलकर फसलों को नुकसान पहुंचाने की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। वन विभाग के लिए वन्यजीव जितने कीमती हैं उतना हीमहत्वपूर्ण इंसानों और उनकी फसलों की सुरक्षा भी है। इसलिए हाथियों को खदेड़ना जरूरी हो गया है। जंगल में हाथियोंकी मौजूदगी से जंगल में रहने वाले बाघ, तेंदुआ और दूसरे वन्यजीव जंगल से निकलकर बाहर भटक रहे हैं। जो इंसानोंपर हमला कर मानव- वन्यजीव संघर्ष की स्थिति पैदा कर रहे हैं। इससे पहले भी कर्नाटक से बुलाए जा चुके हैं ट्रैकर्स तीन साल पहले नेपाल के शुक्ला फाटा नेशनल पार्क से आकर किशनपुर सेंक्चुरी और बफरजोन में डेरा डाले हाथियोंको खदेड़ने के लिए कर्नाटक से ट्रैकर्स बुलाए गए थे। कई दिनों की कवायद के बाद जंगली हाथी अपने प्रचलितकॉरिडोर से होते हुए नेपाल चले गए थे।

ऐसे हाथियों को खदेड़ते हैं ट्रैकर्स हाथियों को खदेड़ने के लिए प्रशिक्षित ट्रैकर्स एक विशेष प्रकार की आवाज निकालते हैं। जिससे डरकर हाथी भाग खड़ेहोते हैं। ट्रैकर्स पहले जिस जगह हाथी होते हैं उनसे कुछ दूरी बनाकर घेर लेते हैं,लेकिन जिस तरफ भेजना होता है उसतरफ का रास्ता छोड़ देते हैं। फिर हाथियों के पीछे से एक विशेष प्रकार की आवाज निकालते हैं। इस आवाज कोसुनकर हाथी अपने लिए खतरे का अनुभव करते हैं और वहां से भाग खड़े होते हैं। बताते हैं कि आवाज सुनकर हाथीपलटकर वहां नहीं आते। ‘किसानों की फसलों की सुरक्षा के मद्देनजर नेपाल से आए हाथियों के झुंड को खदेड़ना जरूरी है। इसके लिए तमिलनाडुसे ट्रैकर्स बुलाने पर विचार किया जा रहा है।’ -संजय बिस्वाल, डीएफओ, दक्षिण खीरी वन प्रभाग महेशपुर देवीपुर बीट के जंगल में लौटे नेपाली हाथी ममरी। मोहम्मदी रेंज के आंवला जंगल में चार दिन ठहरने के बाद 43 हाथियों का झुंड शनिवार की रात फिर वापसमहेशपुर देवीपुर के जंगल में लौट आया है। शनिवार की रात 20 किलोमीटर की दूरी तय करके हाथियों का झुंड यहांपहुंचा है। रेंजर नरेश पाल सिंह का कहना है कि हाथियों के रुख को देखते हुए उन्हें पूरी उम्मीद है कि हाथी रविवार कीरात सहजनिया जंगल होते हुए या तो खुटार जंगल या फिर मैलानी जंगल में चले जाएंगे। हाथियों को यहां के जंगल मेंआए काफी दिन बीत चुके हैं। बताया कि वनकर्मियों की टीम उनकी चहलकदमी पर पैनी नजर रख रही है, जबकि अपनीफसलों की सुरक्षा को लेकर किसान चिंतित हैं।



(SOURCE : AMARUJALA)

 
 
 

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